नवोदय के मस्तमौला दोस्त
नवोदय के वो दिन, और दोस्ती की टोली,
हंसते-हंसते पेट दुखे, कहानी है ये पूरी।
वो मस्तमौला यार, जो हर पल थे तैयार,
शरारतों का था उनकी जेब में भंडार।
रात को रजाई में छुपकर बातें करना,
वार्डन के आते ही बत्तियां बुझा देना।
मेस में चुपके से एक्स्ट्रा पराठा लेना,
और फिर पकड़कर बहाने हजार देना।
क्लास में प्रोफेसर की नकल उतारना,
पीछे बैठकर कागज के हवाई जहाज उड़ाना।
पढ़ाई के समय, नींद में डूब जाना,
और खेल के समय, सर पर पट्टी बांध आना।
रात को हॉस्टल में भूत की कहानियां सुनाना,
फिर डर के मारे खुद ही चुप हो जाना।
प्लेट में सब्जी छुपाकर दूसरों की तरफ सरकाना,
और पकड़े जाने पर मासूमियत दिखाना।
वो लड़ाई-झगड़े, फिर गले लग जाना,
दोस्तों के बिना हर पल अधूरा सा लगना।
माथे पर मुस्कान, और दिल में शरारत,
दोस्ती के इन किस्सों की क्या करें बयारत!
आज याद आती है वो हंसी-खुशी की बात,
जिन्होंने हमारे जीवन को दी इतनी सौगात।
नवोदय के दोस्तों, तुम हो बड़े खास,
तुम्हारे बिना अधूरी है हमारी हर आस!
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