नवोदय के वो सुनहरे पल
नवोदय के आंगन में वो बिता हुआ समय,
मन के कोने में आज भी बसता है कहीं।
वो सुबह की प्रार्थना, वो हंसी के ठहाके,
वो दोस्ती की मिठास, और हर दिन के झांके।
संग-साथ वो खाना, मेस की वो कतारें,
खुद से आगे बढ़ने की वो प्यारी पुकारें।
वो चटाई पर सोना, तारों की छांव,
सपनों को बुनने का वो प्यारा ठांव।
होस्टल के वो कमरे, कहानियों के झूले,
हर दीवार पर यादों के गहरे रंग फूले।
सर्द रातों में रजाई के अंदर की बातें,
और गर्मियों में ठंडी हवा की सौगातें।
हर त्योहार मिलकर मनाते थे हम,
जैसे एक परिवार, बिना किसी गम।
वो कक्षा का डर, और परीक्षा की तैयारी,
सपनों को पाने की अनगिनत बारी।
आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं,
उन यादों को दिल से महसूस करता हूं।
नवोदय का वो प्यार, वो अपनापन,
कभी न भूलने वाला, वो रिश्ता अनंत।
ओ नवोदय, तुझे नमन है मेरा,
तेरे बिन अधूरा जीवन का बसेरा।
यादों के इस कारवां को सहेजकर,
तुझसे फिर मिलने की ख्वाहिश में डूबा।
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