कई बार अब भी पहुँच जाता हूँ ,
उस प्रांगन में - सपनों में ही सही ,
शायद कुछ छूट गया है मेरा वहाँ ,
उसी को बटोरने पहुँच जाता हूँ।
हौले से उन दीवारों को छूता हूँ ,
धीरे से हॉस्टल के कमरे की किड़ाव खोलता हूँ ,
एक चक्कर उस खेल के मैदान का मार आता हूँ ,
उस बेंच पर अपने खुरचे शब्द ढूँढ़ता हूँ।
उस कोने में पहुँचता हूँ, जहाँ गिराये थे मैंने कभी आँसू
मेस में पहुँचकर चम्मचों की आवाज सुनता हूँ ,
न जाने किस कोने में बसी पड़ी है अभी भी ये यादें ,
मैं अक्सर सपनों में अब भी अपने स्कूल जाता हूँ।
कॉपी पेस्ट
आनन्द मेहरा
1989-1996 बैच
जवाहर नवोदय विद्यालय , ताड़ीखेत ( अल्मोड़ा ) - उत्तराखंड की फेसबुक वॉल से।
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